अब न्यूरालिंक ह्यूमन ट्रायल के लिए लोगों की भर्ती कर सकेगी और ह्यूमन ट्रायल कामयाब रहा तो चिप के जरिए ब्लाइंड भी देख सकेंगे तथा पैरालिसिस से पीड़ित मरीज सोचकर कंप्यूटर चला सकेंगे।
एलन मस्क ने कहा- 'पहले मरीज को जल्द ही न्यूरालिंक डिवाइस मिलेगी। इसमें पूरे शरीर के मूवमेंट को रिस्टोर करने की क्षमता है। कल्पना कीजिए अगर स्टीफन हॉकिंग के पास यह होता।'
स्टीफन हॉकिंग वर्ल्ड फेमस ब्रिटिश फिजिसिस्ट और कॉस्मोलॉजिस्ट थे। वो एमियोट्रोफिक लेटरल स्क्लेरोसिस नाम की बीमारी से पीड़ित थे। इस बीमारी में शरीर का पूरा मूवमेंट रुक जाता है।
न्यूरालिंक ने कहा कि जिन लोगों को सर्वाइकल स्पाइनल कॉर्ड की चोट या एमियोट्रोफिक लेटरल स्क्लेरोसिस (ALS) के कारण क्वाड्रिप्लेजिया है, वे इस ट्रायल में हिस्सा ले सकते हैं, लेकिन उनकी उम्र मिनिमम 22 साल होनी चाहिए और इस स्टडी को पूरा होने में करीब 6 साल लगेंगे, इस दौरान पार्टिसिपेंट को स्टडी रिलेटेड कॉस्ट, जैसे साइट तक आने-जाने का ट्रैवल एक्सपेंस मिलेगा।
ट्रायल के जरिए कंपनी यह देखना चाहती है कि डिवाइस मरीजों पर कैसे काम कर रहा है। N1 इंप्लांट, R1 रोबोट और N1 यूजर ऐप की सेफ्टी भी चेक की जाएगी। हालांकि कंपनी ने अभी यह नहीं बताया है कि ट्रायल कब शुरू होगा या इसमें कितने प्रतिभागी शामिल होंगे। इससे पहले मई में कंपनी को ट्रायल के लिए यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन से मंजूरी मिली थी।
मरीजों में सर्जरी के जरिए N1 इम्प्लांट को मस्तिष्क के उस क्षेत्र में लगाया जाएगा जो मूवमेंट को कंट्रोल करता है, ये सर्जरी R1 रोबोट के जरिए होगी। जिन भी लोगों में N1 इम्प्लांट लगेगी, उनसे कंप्यूटर को कंट्रोल करने के लिए कहा जाएगा। N1 इम्प्लांट के साथ N1 यूजर ऐप भी होगा और इसके बाद इन लोगों को इस पूरे सिस्टम का फीडबैक देना होगा।
न्यूरालिंक ने कहा, हमारी तकनीक का प्रारंभिक लक्ष्य पैरालिसिस वाले लोगों को कंप्यूटर और मोबाइल डिवाइसेस का नियंत्रण देना है, हम उन्हें इंडिपेंडेंट बनाना चाहते हैं। हम चाहते हैं कि हमारी डिवाइस के जरिए ऐसे लोग फोटोग्राफी जैसी अपनी क्रिएटिविटी भी दिखा सकें। इस तकनीक में कई सारे न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर का इलाज करने की क्षमता है।
चिप इम्प्लांट करने में हमेशा जनरल एनेस्थीसिया से जुड़ा रिस्क होता है, ऐसे में प्रोसेस टाइम को कम करके रिस्क कम किया जा सकता है। कंपनी ने इसके लिए न्यूरोसर्जिकल रोबोट डिजाइन किया है, ताकि यह बेहतर तरीके से इलेक्ट्रोड को इम्प्लांट कर सके।
इसके अलावा, रोबोट को स्कल (खोपड़ी) में 25 मिमी डायमीटर के एक छेद के जरिए थ्रेड डालने के लिए डिजाइन किया गया है तथा ब्रेन में एक डिवाइस डालने से ब्लीडिंग का भी रिस्क है। कंपनी इसे कम करने के लिए माइक्रो-स्केल थ्रेड्स का उपयोग कर रही है।
एलन मस्क ने जिस टेक्नोलॉजी के जरिए चिप बनाई है उसे ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस या शॉर्ट में BCIs कहा जाता है, इस पर कई और कंपनियां सालों से काम कर रही हैं। ये सिस्टम ब्रेन में रखे गए छोटे इलेक्ट्रोड का इस्तेमाल पास के न्यूरॉन्स से संकेतों को "पढ़ने" के लिए करता है और इसके बाद सॉफ्टवेयर इन सिग्नल्स को कमांड या एक्शन में डिकोड करता है, जैसे की कर्सर या रोबोटिक आर्म को हिलाना।
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